Tuesday 22 May 2012



चार आशीर्वाद
किसी जंगल में एक शिकारी जा रहा था , रास्ते में घोड़े पर सवार एक राजकुमार उसे मिला. वह भी उसके साथ हो लिया. आगे उनको एक तपस्वी और साधू मिले वे दोनों भी उनके साथ चल दिये.उन चरों को जंगल में एक कुटिया दिखाई दी. उसमें एक बूढ़े बाबा जी बैठे थे. वे चारो अंदर गये, बाबा जी को प्रणाम किया और बाबा जी ने उन चरों को आशीर्वाद दिये.
बाबा जी ने राजकुमार को कहा की तुम चिरंजीव रहो. तपस्वी से कहा --'ऋषि पुत्र तुम मत जिओ ' साधू से कहा --' तू चाहे जिओ चाहे मरो जैसी तुम्हारी मर्ज़ी .और शिकारी से कहा,---'तुम न जिओ न मरो '. बाब जी चरों को आशीर्वाद दे कर चुप हो गये. चरों आदमियों को बाबा जी का आशीर्वाद समझ में नहीं आया. उनहोंने प्रार्थना की कृपा करके आपना तात्पर्य समझायें.
बाब जी बोले -राजा को मर कर नरक में जाना पड़ता है . मनुष्य पहले ताप करता है, ताप के प्रभाव से राजा बनता है और फिर मरकर नरक मैं जाता है ---' तपेश्वरी राजेश्वरी, राजेश्वरी नरकेश्वरी '. इसीलिए रजा को मैंने जीते रहने का आशीर्वाद दिया.जीता रहे गा तो सुख पायेगा.
तपस्या करने वाला जीता रहेगा तो तो ताप करके शारीर को कष्ट देता रहेगा. वह मर जायेगा तो तपस्या के प्रभाव से स्वर्ग में जाये गा अथवा रजा बनेगा. इसीलिए उस को मरजाने का आशीर्वाद दिया ताकि वह सुख पाये.
शिकारी दिनभर जीवों को मारता है. वह जिए गा तो जीवों को मरेगा और मरेगा तो नरक में जाये गा इसीलिए मैंने उसे कहा कि तुम न जिओ न मरो.
साधू जीता रहेगा तो वह भजन स्मरण करेगा, दूसरों का उपकार करेगा और मर जायेगा तो भगवान् के द्वार में जाये गा. वह जीता रहेगा तो भी आनन्द में मर जाये तो भी आनन्द है .इसी लिए मैंने उसको दिया तुम चाहे जिओ चाहे मरो जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.
राजपुत्र चिरंजीव मा जीव ऋषिपुत्रक : I
जीव व मर व साधू व्याध मा जीव मा मर : II

मनुष्य को अपना जीवन ऐसा बनाना चाहिये कि जीते मौज रहे और मरकर भी मौज रहे ! साधू बनना है पर साधू का विश धारण करने कि जरूरत नहीं! गृहस्थ में रहते हुए भी मनुष्य साधू बन सकता है. भगवन भजन करता रहे और दूसरों कि सेवा करता रहे तो यहाँ भी आनन्द है और वहां भी आनन्द है. दोनों हाथों में लड्डू हैं ! कबीर जी ने कहा है --
सब जग डरपे मरण से, मेरे मरण आनन्द I
कब मरिये कब भेटिये , पूरण परमानन्द II

GeetaPress Gorakhpur



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